मित्रों मुम्बई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है तथा मुम्बई गोदी से सटा हुआ करीब 5 किमी का क्षेत्र बीस साल पहले देश की आर्थिक नीतियों के कारण सोना,चांदी, घड़ियां, अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों की तस्करी का गढ़ रहता था।उस पांच किलोमीटर के क्षेत्र में कमाठीपुरा क्षेत्र सबसे ज्यादा संवेदनशील था। मज़े की बात यह है कि यह क्षेत्र रेडलाइट एरिया भी है और रेडलाइट एरिया के आस पास राजस्थान के एक जिले के वह भी उस जिले के एक तहसील के रहने वाले लोग इस गोरखधंधे को बखूबी अंज़ाम देते थे। उन लोगों के कार्य करने का तरीका इतना अनोखा होता था कि कोई न कोई एजेंसी लगभग रोज ही उस क्षेत्र में रेड करती थी लेकिन कभी भी उनका धंधा बंद नहीं करवा पायी जबकि सभी बड़ी एजेंसी जैसे पुलिस, कस्टम, ईडी, डी आर आई, सी बी आई इत्यादि का हेडक्वार्टर कमाठीपुरा से मुश्किल से दो या तीन किलोमीटर दूरी पर ही है। तस्करी के धंधे में पकड़े जाने पर उन लोगों में से यदि कोई जेल जाता था तो उनके समाज के लोगों को यह कोई बुरी बात नहीं लगती थी क्योंकि उन लोगों का यही मुख्य धंधा था। पहले तो यह सब देखकर मुझे बड़ा अजीब सा लगा क्योंकि हम लोग जिस क्षेत्र से आते हैं वहां पुलिस भी किसी के दरवाजे पर आ जाती है तो सारे गांव में चर्चा का विषय हो जाता है और इसे सम्मान के खिलाफ मानते हैं। लेकिन तस्करी में धंधा करने वालों के इस व्यवसाहिक दृष्टकोंण ने उन लोगों को आर्थिक रूप से बहुत विकसित किया तथा कुछ लोग तो आज की तारीख में कई कई हजार करोड़ रुपए के सम्मानित व्यवसायी हैं।
मैं १९८९-१९९१ में मुंबई कस्टम के गुप्तचर विभाग में कार्य करने के दौरान अक्सर रेड पर जाया करता था तथा हम लोगों की ये रेड ज्यादातर विदेशी सोना, चांदी,घड़ी, विदेशी मुद्रा, नारकोटिक्स आदि के सम्बन्ध में होती थी। यह जानकर आप को हैरानी होगी कि गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल , पंजाब आदि प्रदेशों में खाड़ी देशों से समुद्री रास्ते से या अन्य किसी रास्ते से आया हुआ तस्करी का माल पहले मुंबई आता था और फिर यहां से वितरण का काम अन्य जगहों के लिए होता था तथा माल बिकने के बाद पैसा विदेशी मुद्रा में हवाले द्वारा खाड़ी देशों को पहुंचाया जाता था। राजस्थान के उस विशेष तहसील के लोग धनी होने के साथ विनम्र और व्यवहार कुशल भी होते थे तथा लड़ाई झगडे में विश्वास नहीं रखते थे। अगर अधिकारी लोग पैसे से पट गये तो ठीक नहीं तो माल के साथ पकड़े जाने के बाद भी अधिकारियों का पूरा सम्मान करते थे तथा जमानत के छूटने के बाद भी शिष्टाचार नहीं भूलते थे। इसी दौरान मेरी भी पहचान कुछ खबर देने वालों से हो गई तथा छोटे छोटे केस बनाने लगा था लेकिन कोई बड़ा केस नहीं बन पा रहा था। सोने की वितरण स्तर पर ज्यादा से ज्यादा दस या पन्द्रह विदेशी बिस्कुट, जिसका वजन दस दस तोला होता था, पकड़ में आती थी। मुख्य स्टोरेज का पता लगाना लगभग असम्भव होता था क्योंकि उनके कार्य प्रणाली का तन्त्र इतना मजबूत रहता था कि मुख्य स्टोरेज का जानकारी केवल दो आदमी को रहता था ,एक उसको जिसका माल होता था और दूसरा उसको जो माल रखता था। इसके अलावा शायद ही तीसरा आदमी को जानकारी रहती हो।केवल हम लोग अक्सर ५ या १० या १५ बिस्कुट की वितरण करने वाले आदमी को ही पकड़ पाते थे। मेरी खबरी बनाने की कोशिश में मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलता था और केस बनाने की सम्भावनाऔ को तलाशाता था। वे ख़बरी लोग मिलने में बहुत सकुचाते थे और बड़ी मुश्किल से छिप छिपकर मिल पाते थे और मैं भी एक बिग पहन कर जाता जिससे मैं भी आसानी से पहचान में नहीं आता था। लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था। यद्यपि कि धंधा करने वाले लोग एक दूसरे की चुगली तो करते थे लेकिन खबर देने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखते थे। उनके यहां काम करने वाले भी काफी विश्वासपात्र होते थे और सेठ लोग भी उनका काफी ध्यान रखते थे। इस सब के बावजूद मैंने प्रयास करना नहीं छोड़ा । एक दिन मेरे विश्वसनीय खबरी ने एक बजाज स्कूटर का नम्बर दिया और बताया कि नावेल्टी सिनेमा के आस पास की गलियों में यह खड़ा रहता है और उस पर नजर रखने से शायद काम हो जाय। सोने की बड़ी तस्करी का माल कुछ ही गिने चुने लोग ही वितरण करते थे और वह स्कूटर नम्बर एक बड़े धंधे वाले से सम्बंधित था। यह भी मालूम था कि पंजाब बार्डर से यह सोना आता है तथा यह भी मालूम पड़ा कि यह लोग माल लेने रात के दस बजे या सुबह करीब पांच बजे के आस पास जाते हैं पर कौन सा दिन जाते हैं यह नहीं मालूम था । लेकिन एक महत्वपूर्ण जानकारी मिली कि एक हफ्ते में लगभग एक बार तो माल लेते हैं और उसकी मात्रा २०० से ३०० बिस्कुट की होती है। इतनी बड़ी मात्रा का सोना पकड़ने का अवसर बहुत ही कम हम लोगों को मिलता था और वह भी अपनी सूचना पर।
एक रविवार को मैं नावेल्टी टाकिज के आस पास की सड़कें और गलियां छान डाला और एक सड़क , जो नावेल्टी टाकिज के पीछे से शुरू होती थी, के बीच में वह बजाज स्कूटर खड़ा मिल गया। चूंकि सड़क वहीं से शुरू होती थी और उसकी चौड़ाई अच्छी खासी थी इसलिए लोग बीच में पार्किंग करते थे तथा यातायात दोनों किनारों से करते थे ।कौन और कब इस स्कूटर को माल लेने के लिए ले जायेगा इसका कुछ पता नहीं था।खबरी इससे ज्यादा कुछ बताने कि स्थिति में नहीं था। बड़ा ही चैलेंजिंग कार्य था। चूंकि खबर देने वाला भरोसे वाला व्यक्ति था इस स्कूटर पर नजर रखने की मैंने योजना बनाई जिसके लिए अपने परिचित दो बेरोजगार लड़कों को इस काम के लिए उपयुक्त समझा। वह जगह आफिस से नजदीक था इसलिए आफिस से छूटने के बाद मैं वहां पहुंच जाता था और वे लड़के भी मोटर साइकिल से वहां पहुंच आते थे और हम तीन लोग कई दिनों तक सन्ध्या करीब ९ बजे से रात के ११ बजे तक उधर ही रहते थे । लेकिन कोई उस स्कूटर को ले नहीं जाता था। घर चूंकि काफी दूर पड़ता था इस कारण सुबह निगरानी का प्रोग्राम आलस्य के कारण नहीं बना पाता था। मैं निगरानी के वक्त एक बिग पहन लेता था । जब कई शाम की निगरानी का कोई फल नहीं निकला तो मैंने यह निर्णय लिया कि कल से सुबह की भी निगरानी करेंगे क्योंकि मुझे पता था कि वह तस्कर एक हफ्ते में कम से कम एक बार तो डिलीवरी लेता है। वे दोनों लड़के सुबह को भी आने को तैयार हो गये।
हम तीनों लोग सुबह करीब साढ़े चार बजे ही मेरी कार से वहां पहुंच जाते थे और दो घंटे निगरानी करके घर वापस आ जाते थे और बाद में फिर शाम आफिस से वहीं पहुंच जाता और रात को ११ बजे तक वहीं रहते थे। कार को थोड़ी दूर ही खड़ा कर देता था। सुबह की निगरानी में थोड़ी दिक्कत आती थी क्योंकि छिपने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिलता था क्योंकि दुकानें वगैरह बन्द रहती थी। लेकिन एक दो बड़ी ट्रेलर वहीं पास खड़ी रहती थी जिसकी ओट से हम लोग छिपकर बारी बारी उस स्कूटर पर नजर रखते थे।
यह निगरानी करीब दो दिन इस तरह लगातार चली कि तीसरे दिन जब हम सुबह की निगरानी कर रहे थे कि क्या देखते हैं सुबह साढ़े पांच एक सांवले रंग का लगभग चालीस साल का आदमी उस स्कूटर को स्टार्ट कर ले गया। अब मैं बहुत ही सावधान हो गया और अनेकों प्रश्न दिमाग में घूमने लगे कि आगे क्या और कैसे होगा। यह आदमी कहां रहता है और क्या करता है, इन चीजों की कोई जानकारी नहीं थी। एक घंटे बाद काफी उजाला हो गया तो मैंने उस स्थान पर जहां से सड़क शुरू होती है वहां एक औरत को एक कोने में बैठे देखा जिसके पास बड़ा सा आटा रखने वाला अल्यूमीनियम का डब्बा था । सड़क पर गतिविधियों उजाला होने के कारण बढ़ गई थी। करीब सात बजे के आस पास वह सांवले रंग वाला व्यक्ति स्कूटर लेकर वापस आया और सीधा उस औरत के पास गया जिसके पास आटा का डब्बा था। वह इधर उधर देखकर स्कूटर की डिकी से कुछ निकाला और उस आटा के डब्बे में रख दिया। हम लोग चूंकि पीछे थे इसलिए क्या निकाल रहा है यह देख नहीं देख पाये। वह लोग एक दूसरे से कवर करते हुए सामान निकाल रहे थे। उसके बाद दोनों ने मिलकर डब्बा को उठाया और औरत ने अपने सिर पर रख लिया और नावेल्टी टाकिज वाली मुख्य सड़क की तरफ चलने लगी। मेरा इशारा पाते ही उन दोनों में से एक लड़का उस औरत के पीछे कुछ दूरी बनाकर चल दिया। चूंकि उस औरत के सिर पर डब्बा था इसलिए उसको आसानी से पीछा किया जा सकता था। कुछ मिनटों बाद वह औरत दुबारा वापस आयी और उस आदमी ने दुबारा उसी तरह डब्बा में डिकी से कुछ सामान निकाल कर रखा और पहले की तरह औरत सिर पर रखकर पहले वाली दिशा में चली गई। वह आदमी स्कूटर को स्टार्ट कर उसी जगह पर खड़ा कर दिया जहां से वह ले गया था। जिस तरह उस आदमी और औरत ने मिलकर एल्युमिनियम के डब्बे को सिर पर रखा उसको देखकर कोई भी सामान्य अनुभव वाला व्यक्ति आसानी से यह अंदाज़ा लगा सकता है कि कोई वजन वाली चीज ही उस डब्बे में रखी गई थी। मुझे तो लगभग भरोसा ही हो गया था कि वह वजन वाली चीज और कुछ नहीं बल्कि सोना ही है।इतने में वह निगरानी करने वाला लड़का जो उस डब्बे वाली औरत के पीछे गया था वापस आ गया और मुझे नावेल्टी टाकिज वाली सड़क पर वह चाल दिखायी जिसमें औरत डब्बा लेकर गयी थी। उसने बताया कि वह औरत उस चाल के आखिरी खोली में गयी है और चाल वहीं समाप्त हो जाती है। अब समय बड़ा नाज़ुक था और निर्णय लेने का था।
मैंने बगल की दुकान से अतिरिक्त कमिश्नर अरोरा सर को टेलीफोन किया ( उस समय मोबाइल नहीं आया था) तथा अन्य अधिकारियों को जल्दी भेजने के लिए कहा। उसके बाद अपने कार में जाकर पैजामा कुर्ता और बिग उतारकर पैंट शर्ट पहनी और सर्विस रिवाल्वर लेकर चाय की दुकान पर अपने मित्र अधिकारियों का इंतजार करने लगा। उन निगरानी करने वाले लड़कों को उस जगह से वापस भेज दिया। एक एक मिनट बड़ी बेचैनी से बीत रहा था तथा दिल की धड़कने, कुछ अच्छा होगा इस उम्मीद में, तेजी से चलने लगी। कुछ आशंका भी हो रही थी कि कोई अनहोनी न हो जाय। इसी उधेड़ बुन में ही मन चल रहा था कि करीब आधे घंटे के अन्दर ही अरोरा सर पहुंच आये और उनको घटना का विवरण बता ही रहा था कि आर एन पाठक, जगदीश राठी, मनीष कुमार, राकेश कुमार और यशवीर सिंह मित्र अधिकारी लोग पहुंच आये। हम लोग बिना समय गंवाए सीधे उस चाल में घुस गये और आखिरी खोली में गये तो देखते हैं कि दरवाजा खुला है और उस एक कमरे की खोली में वह डब्बा वाली औरत,एक बच्ची और एक बूढ़ा आदमी मिलकर सोने के दस दस बिस्कुट की अखबार के पन्नों से पैकिंग कर रहें और कमरे में सोना फैला पड़ा है।हम लोगों की आश्चर्य से आंखें खुली की खुली रह गई। अरोरा सर ने कहा कि सोना ऐसे फैला है जैसे आलू प्याज।वह आदमी कपड़े उतार कर नहाने की तैयारी कर रहा था। मैं तीव्र उत्सुकता वश उस आदमी से हिन्दी में पूछा कि क्या सोने के २०० बिस्कुट हैं तो उसने अंग्रेजी में जवाब दिया कि २०० नहीं ५०० बिस्कुट हैं। ५०० बिस्कुट सुनते ही मित्र अधिकारी राठी साहब ने मुझे बाहों में भर कर बोले "आर एन यू आर ग्रेट" और फिर सभी ने खुशी होकर इतने बड़े सीजर की बधाई दी। मैं तो शब्द शून्य हो गया था और थका महसूस करने लगा था क्योंकि पिछले ढाई घंटे का समय बहुत ही तनाव और भावनात्मक उथल पुथल के बीच गुजरा था।
कंट्रोल रूम से आयी हुई विभागीय गाड़ी में सोना और उस आदमी को कस्टम हाऊस ले जाया गया जहां ४९९ बिस्कुट गिनती में पाये गये जो विदेशी ब्रांड के थे और एक एक बिस्कुट दस दस तोला का था तथा कुल मिलाकर करीब ५५ किलो सोना जब्त किया गया। शाम को हम लोग दूरदर्शन पर समाचार के वक्त अपने को देखकर गोरवान्वित हुए। इतने बड़े केस की आगे की जांच पाठक साहब और राठी साहब ने जिम्मेदारी सम्हाली जिसमें पता चला कि वह आदमी दक्षिण भारत का रहने वाला है और मुम्बई में टैक्सी चलाता है। जांच के दौरान मुख्य अपराधी भी पकड़ा गया।
करीब एक महीने पहले ४०० बिस्कुट का एक और केस इसी तरह से धैर्य और परिश्रम से बन गया था। उस केस में मित्र अधिकारी मीर रंजन नेगी और रंजीत सिन्हा ने साथ दिया था। उस केस की दास्तां फिर कभी लिखूंगा।
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